नेट मीटरिंग ग्रिड से जुडी हुई घरेलू रूफ-टॉप सोलर सिस्टम की एक बहुत जरूरी प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया का काम हम निम्नलिखित मुद्दों की मदद से क्रमवार समझेंगे।
1. सौर्य बिजली का उत्पादन सुबह १० – १०:३० बजे से लेकर कुछ ५-६ घंटों तक अधिकतम होता है, क्योंकि इस दौरान सूरज की सबसे ज्यादा रोशनी सोलर पैनलों के ऊपर गिरती है।
2. ग्राहक के हित में है कि सोलर सिस्टम के साथ बिजली कंपनी की पावर सप्लाय (याने कि ‘ग्रिड’) का घरेलू कनैक्शन भी चालू रखा जाय। जैसे कि अगर बादलों के कारण सौर्य बीजली का उत्पादन बंद है, तो तब ग्रिड की बिजली काम में आएगी।
3. बिजली के उपकरणों में बिजली की ऊर्जा का जो व्यय होता है, उसका हिसाब किलोवॉट-अवर (kilowatt-hour, kWh) में होता है। यहाँ १ किलोवॉट-अवर (kWh) उतनी ऊर्जा है जो किसी १ किलोवॉट वाले उपकरण को १ घंटे तक चला सके। किलोवॉट-अवर को अक्सर यूनिट (unit) भी कहा जाता है।
4. घर में बिजली का उपयोग मौसम के साथ बदलता रहता है, और हर दिन हमारी दिनचर्या के अनुसार भी बदलता रहता है। दोपहर के आस-पास, जब सौर्य बिजली का उत्पादन अधिकतम होता है, तब जरूरी नहीं है कि उस सारी बिजली का उपयोग घर में हो रहा हो। ऐसे जब सौर्य बिजली घर में मिल रही है, पर उसका पूरा उपयोग नहीं हो रहा, तो उस बिजली को बिजली कंपनी की ग्रिड में वापिस भेजने का प्रयोजन ग्रिड से जुडी सोलर सिस्टम में होता है।
इस प्रक्रिया को कहते हैं घर से ग्रिड में बिजली को एक्सपोर्ट (export) करना। और जब ग्रिड से बिजली घर में ली जाती है, उसे कहते हैं बिजली को इम्पोर्ट (import) करना। पुराने दिनों में घरों में बिजली सिर्फ इम्पोर्ट होती थी, क्योंकि घरेलू सोलर सिस्टम जैसी कोई चीज़ तब होती नहीं थी।
घरेलू सोलर सिस्टम से ग्रिड में जितनी बिजली एक्सपोर्ट होती है, उतनी बिजली पावर सप्लाय कंपनी में ग्राहक के खाते में जमा रहती है। जब सौर्य बिजली का उत्पादन नहीं हो रहा है – या तो वह उपयोग से कम हो रहा है – तब यह जमा खाते वाली बिजली ग्राहक को बिना किसी खर्च के वापिस मिलती है। याने कि ग्रिड बिजली के एक बहुत बड़े भंडार जैसा काम करती है, जहां से ग्राहक अपने उपयोग के अनुसार बिजली की लेन-देन करता है।
पावर सप्लाय कंपनी ग्राहक के बिजली के एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट का एक अलग खाता रखती है, जिसमें ग्राहक के बिजली के उत्पादन और व्यय का पूरा हिसाब रहता है।
उदाहरण: मान लीजिए कि ग्राहक ने एक महीने में कुल ३०० यूनिट बिजली का उपयोग किया। इनमें से १४० यूनिट बिजली उसे अपनी सोलर सिस्टम से मिली। तो उसका बिल बनेगा बाकी के ३०० – १४० = १६० यूनिट बिजली का। घर में चाहे कभी भी बिजली का उपयोग हो – सुबह, दोपहर, शाम या रात्रि – बिल तो १६० यूनिट का ही बनेगा।
फ़ायदा: स्पष्ट है कि नेट मीटरिंग की मदद से ग्राहक को दो बडे फ़ायदे मिल रहे हैं। (१) एक फ़ायदा यह है कि वह बिजली का उपयोग दिन में कभी भी कर सकता है, चाहे उस समय सौर्य बिजली का उत्पादन हो कि ना हो। (२) दूसरा फ़ायदा यह है कि उसे अपने घर में पैदा की गई बिजली की पूरी कीमत मिल रही है, अगर बिजली ग्रिड में एक्सपोर्ट हो रही है।
नेट मीटरिंग की सुविधा पाने के लिए ‘टू-वे’ मीटर (bi-directional meter) नाम का एक इलेक्ट्रोनिक मीटर घर में लगाना होता है, जो हर सेकंड इम्पोर्ट या एक्सपोर्ट हो रही बिजली का हिसाब रखता है। बिजली का मासिक या द्विमासिक बिल मीटर के इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट दोनों रीडिंग के आधार पर ऊपर बताए उदाहरण के अनुसार बनता है।
एक चित्र की मदद से हम नेट मीटरिंग का महत्व समझ सकते हैं, जिसमें ‘टू-वे’ मीटर का काम भी दिखाया गया है।
नीचे दिखाया हुआ फोटोग्राफ सरकार-मान्य एक ‘टू-वे’ मीटर (याने कि bi-directional meter) का है।

घर में सोलर सिस्टम के साथ नेट मीटरिंग लगवाने के लिए पावर सप्लाय कंपनी और राज्य सरकार दोनों से स्वीकृति लेनी होती है। अलग-अलग राज्यों में यह प्रक्रिया कैसे होती है, इसका ब्योरा हमने इस लिंक पर दिया हुआ है।
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