आज के दौर में लोगों के लिए खाना जितना जरूरी है, उतनी ही जरूरी है शिक्षा। क्योंकि, शिक्षा के बिना हमारे जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आज सरकार योजनाओं के तहत बड़े पैमाने पर स्कूल, कॉलेज और ट्रेनिंग सेंटर जैसे शैक्षणिक संस्थान तो खोले ही जा रहे हैं, लेकिन शिक्षा व्यवस्था में बढ़ते निजीकरण के कारण, यह लोगों के लिए बड़ा बिजनेस मॉडल भी बन गया है।
इससे देश के आर्थिक विकास को काफी हद तक फायदा ही है, क्योंकि स्कूल, कॉलेज खुलने से स्थानीय स्तर पर रोजगार के कई नए साधन विकसित हो रहे हैं और लोगों में शिक्षा को लेकर बदलाव की एक नई लहर देखने को मिल रही है।
आज दूरदराज के इलाकों में भी नर्सरी से लेकर मिडिल क्लास तक के लिए कई स्कूल खुल रहे हैं, लेकिन भारी बिजली कटौती के कारण उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे स्कूलों में आम तौर पर 400 से 500 बच्चे पढ़ते हैं और यहाँ पंखा, लाइट, सीसीटीवी कैमरा, कम्प्यूटर, वाटर कूलर और प्रोजेक्टर जैसी चीजों को चलाने के लिए हमेशा बिजली की जरूरत होती है। लेकिन सरकारी बिजली में कटौती के कारण बच्चों की पढ़ाई काफी हद तक प्रभावित होती है और उनका एकेडमिक रिकॉर्ड खराब होता है।
कैसे मिलेगी राहत?
बिजली की समस्या को देखते हुए, कई स्कूलों में जनरेटर की व्यवस्था की जाती है। लेकिन आज डीजल का दाम काफी ऊँचा हो गया है और सभी स्कूल इसे चलाने में भारी खर्च को देखते हुए, इसका इस्तेमाल करने से कतराते हैं।
बता दें कि यदि आप जनरेटर का हर दिन दो घंटे भी इस्तेमाल करते हैं, तो आपको महीने का 40 हजार से 50 हजार के बीच में खर्च आना कोई बड़ी बात नहीं है। साथ ही, इससे वायु प्रदूषण भी होता है, जो बच्चों को पर्यावरण के प्रति एक गलत संदेश देता है।
ऐसे में स्कूल प्रबंधन द्वारा सोलर सिस्टम को अपनाना सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है। क्योंकि, भारत के अधिकांश हिस्सों में साल भर में करीब 350 दिनों की अच्छी धूप आती है और सोलर पैनल के इस्तेमाल के जरिए वे बिजली के मामले में बिल्कुल आत्मनिर्भर हो सकते हैं।
कितने वाट के सिस्टम की पड़ेगी जरूरत?
किसी भी शैक्षणिक संस्थान के लिए शुरुआती दिनों में 5 किलोवाट का सोलर सिस्टम पर्याप्त साबित हो सकता है। क्योंकि, यदि किसी के पास 5 किलोवाट की बैटरी है, तो उन्हें इसे चार्ज करने के लिए 5 यूनिट बिजली की जरूरत होगी।
लेकिन, यदि आपके पास 4500 वाट का सोलर पैनल है तो इससे एक दिन में कम से कम 20 यूनिट बिजली बनती है। इसका सीधा अर्थ यह है कि आपके पास अपनी बैटरी चार्ज करने के बाद भी, कम से कम 15 यूनिट बिजली बचेगी।
इस बची बिजली का इस्तेमाल आप अपनी दिन भर की जरूरतों को पूरा करने के लिए कर सकते हैं चूंकि, अधिकांश शैक्षणिक संस्थान तो दिन के समय में ही चलते हैं और उन्हें अपने बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए, कभी भी सरकारी बिजली की जरूरत नहीं पड़ेगी।साथ ही, यदि किसी को रात में बिजली की जरूरत नहीं है, तो वे सीधे सोलर पैनल के जरिए ही अपने एप्लायंसेज चला सकते हैं और उन्हें पावर बैक सॉल्यूशन के तौर पर बैटरी की जरूरत नहीं पड़ेगी।
कितना होगा खर्च?
आज से कुछ समय पहले 5 किलोवाट बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए 10 किलोवाट के इन्वर्टर बैटरी की जरूरत पड़ती थी। लेकिन आज समय बदल चुका है और यदि आपको 5 किलोवाट बिजली चाहिए, तो आपको इतने का ही सिस्टम चाहिए।
क्योंकि, पहले बाजार में जो भी बैटरी मिलती थी, उसकी इफिशियंसी रेट किसी तरह 70 फीसदी होती थी। लेकिन लूम सोलर की लिथियम ऑयन बैटरी CAML 100 की इफिशियंसी रेट 100 फीसदी है। यानी आप बैटरी की पूरी क्षमता का इस्तेमाल कर सकते हैं।
क्या है इस बैटरी में खास?
लूम सोलर की CAML 100 बैटरी, लिथियम फॉस्फेट से बनी है। इस बैटरी को घर में रखने के लिए ज्यादा जगह की जरूरत नहीं पड़ती है और यह क्षमता में चार बैटरी के बराबर अकेले है।
यह बैटरी एक केबिनेट के अंदर आता है, जो इसके लुक को काफी खास बनाता है और इसमें रखरखाव की भी कोई जरूरत नहीं होती है। साथ ही, यह बैटरी आईओटी पर आधारित है यानी आप इसे अपने मोबाइल और कम्प्यूटर से कहीं से भी आसानी से कंट्रोल कर सकते हैं। इस बैटरी को चार्ज होने में सिर्फ डेढ़ घंटे लगते हैं।
किस तरह का लें इन्वर्टर?
इन्वर्टर के लिए आप बिना सोचे लूम सोलर के Fusion Inverter को चुनें। यह फिलहाल भारत का सबसे हाई इफिशियंसी इन्वर्टर है। आज के दौर में बाजार में जितने भी इन्वर्टर मिल रहे हैं, उसकी इफिशियंसी रेट अधिकतम 80 फीसदी है।
लेकिन फ्यूजन इन्वर्टर की इफिशियंसी रेट 100 फीसदी है और यह बैटरी को तेजी से चार्ज करता है।यह इन्वर्टर MPPT टेक्नोलॉजी पर आधारित है यानी आप इसमें प्रोफाइल सेट कर सकते हैं और यह सोलर पैनल, बैटरी और बिजली पर बिना किसी दिक्कत के आसानी से ऑटोमेटिकली शिफ्ट हो जाएगा।
किस तरह का लें सोलर पैनल
यदि आप स्ट्रक्चर पर ज्यादा खर्च नहीं करना चाहते हैं, तो आप लूम सोलर के Shark Solar Panel को खरीद सकते हैं और यदि आपको अत्याधुनिक तकनीकों से लैस सोलर पैनल चाहिए, तो आप Bi Facial सोलर पैनल की ओर रुख कर सकते हैं।
चूंकि, स्कूल-कॉलेजों में जगह की कोई कमी नहीं होती है। इसलिए अपने शैक्षणिक संस्थानों में सोलर पैनल को छत पर लगाने के बजाय बगीचे या कार पार्किंग प्लॉट जैसे जगहों पर लगाएं, इससे लुक अच्छा बनेगा और बच्चों को इसे लेकर जागरूकता बढ़ेगी।
कितना होगा खर्च
यदि आप 5 किलोवाट की सोलर सिस्टम लगाने की योजना बना रहे हैं, तो आपको करीब 5 से 7 लाख का खर्च आएगा। इस खर्च को आप ईएमआई के जरिए किस्तों में भी चुका सकते हैं।
निष्कर्ष
यदि आप सोलर सिस्टम में निवेश करने की योजना बना रहे हैं, तो आपको एक एक्सपर्ट गाइड की जरूरत पड़ेगी। यदि आप अपने साइट पर इंजीनियर विजिट चाहते हैं, तो हमसे संपर्क करें।